हम भारत में हो रहे बड़े बदलावों और विकास कार्यो की दहलीज पर खड़े हैं। यह हर भारतीय के लिए उम्मीदों भरा दौर है, एक एेसा दौर जिसमें वे बेहतर जिंदगी और बेहतर देश का ख्वाब देख सकते हैं। लिहाजा, यही वह वक्त है, जब हम भविष्य के भारत का ताना-बाना बुनें। हालांकि जब हम सावधानीपूर्वक इस ओर देखें कि देश क्या बन सकता है तो हमें इस तथ्यात्मक तस्वीर को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए कि भारत का एक गौरवशाली अतीत भी है, न सिर्फ आर्थिक समृद्धि के पैमाने पर बल्कि नैतिक मूल्यों के पैमाने पर भी। मुङाे भारतीय होने पर गर्व है और उन मूल्यों पर भी, जो भारत के साथ जुड़े हैं। हमारी आध्यात्मिक विरासत और उच्च नैतिक आदर्श ही हमें दूसरों से जुदा करते हैं और विकास की अपनी दौड़ में हमें इन्हें किसी भी हालत में अनदेखा नहीं करना चाहिए।
सुनहरे अतीत के बावजूद, बेशुमार जंगों और विदेशी अतिक्रमणों ने भारत को दुनिया के मुकाबले कई सौ साल पीछे धकेल दिया था। आजादी के बाद, हालांकि स्थिति सुधरनी शुरू हुई। भारत ने बेशक पिछले ६0 बरसों में तरक्की की नई इबारतें लिखी हैं। खासतौर पर जब औद्योगिकीकरण, कृषि और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की बात की जाए। लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
मैंने पिछले दो दशकों में एक स्वागतयोग्य बदलाव की आहट महसूस की है। चाहे इसे आर्थिक सुधारों के नतीजे कहिए या फिर नई शुरुआत, पिछले चंद बरसों में भारतीयों में खुद पर यकीन करने का आत्मविश्वास कूट-कूट के भर गया है। मुङाे गर्व है कि दिल्ली मेट्रो ने भी इस काम में छोटी सी भूमिका निभाई है। इस विश्वस्तरीय मेट्रो का निर्माण और संचालन तयशुदा कार्यक्रम से भी पहले चलने और बजट के अंदर रहने से भारतीयों में यह आत्मविश्वास पनपा कि वे भी सबसे चुनौतीपूर्ण और जटिल तकनीक वाले प्रोजेक्टों को पूरी कुशलता के साथ अंजाम दे सकते हैं।
मैंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में दशकों बिताए हैं और मेरे सपनों के भारत में एेसा पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम ही होगा, जिसे दुनियाभर में बेहतरीन होने का दर्जा मिले। मैं जानता हूं कि यह संभव है लेकिन इसे हकीकत की शक्ल देने के लिए कई चीजों को बदलना होगा।
लंबी दूरियों के लिहाज से भारत एक विशाल देश है और इसीलिए इसके आर्थिक विकास के मद्देनजर तेज रफ्तार, विश्वसनीय और सुरक्षित ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की जरूरत है। दुर्भाग्य से, हमारे नीति निर्धारक इस बात को समङाने में नाकाम रहे कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर में किया जाने वाला निवेश दूसरे सेक्टरों में हो रहे देश के विकास में ही घूम-फिर कर काम आता है। देश में ७0 फीसदी से यादा माल ढुलाई और यात्रियों का आना-जाना सड़कों के जरिए होता है। नेशनल हाइवे समेत नई सड़कें बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। स्वर्णिम चतरुभुज परियोजना को इस दिशा में शुरुआत माना जा सकता है और मुङाे उम्मीद है कि इस तरह के अन्य प्रोजेक्ट भी रफ्तार पकड़ेंगे।
जहां तक भारतीय रेलवे की बात है, इसके आधुनिकीकरण और सुरक्षात्मक उपायों के लिए आक्रामक नीति बनाने की आज सख्त जरूरत है। रेलवे को माल ढुलाई के लिए कंपनियों को समर्पित डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर अपनी प्राथमिकता को भी बदलकर यात्रियों के लिए डेडिकेटेड हाई स्पीड पैसेंजर कॉरिडोर करनी चाहिए, जिसमें सभी मेल और एक्सप्रेस रेलगाड़ियों को चलाना चाहिए। इसके जरिए उससे कहीं यादा क्षमता भी मिल जाएगी, जितनी कि माल ढुलाई के लिए आज दरकार है।
हवाई उड़ानों के मोर्चे पर भी, लगता है हम भविष्य की ओर देख ही नहीं रहे हैं। देश को आज आधुनिक हवाईअड्डों की जरूरत है और कम से कम आज की तादाद के मुकाबले तो तीन से चार गुना यादा संख्या में। बेंगलुरू के देवनहल्ली और हैदराबाद के पास शम्साबाद में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है लेकिन इस तरह के कई और प्रोजेक्ट की जरूरत है। खासतौर पर दूर-दराज के इलाकों में इनकी जरूरत है और मुङाे उम्मीद कि देश के कोने-कोने में हवाई संपर्क का सपना भविष्य में सच हो सकेगा।
एक तरफ तो हमारे शहर तेजी से बढ़ रहे हैं मगर दूसरी तरफ शहरी परिवहन ढांचा अफसोसजनक तरीके से पिछड़ रहा है। दिल्ली मेट्रो जैसे आधुनिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम हमारे शहरों की आर्थिक गतिविधियों की चाल बरकरार रखने के लिए बेहद जरूरी हैं। निजी कारों के इस्तेमाल को कम करने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को यादा इस्तेमाल करने को प्रोत्साहन देने के कदम भी उठाए जाने चाहिए। शुक्र है, दिल्ली मेट्रो की सफलता के बाद मुंबई, बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद और चेन्नै जैसे कई और भारतीय शहरों में मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है।
सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति घोषित की है, जो कि एक अछी शुरुआत है। सरकार को अब ३0 लाख से यादा आबादी वाले हमारे सभी शहरों में मेट्रो निर्माण और विस्तार की देखभाल के लिए भी एक अलग मंत्रालय बनाना चाहिए। केवल इन्हीं तरीकों से हमारे मध्यम और बड़े शहरों में ट्रांसपोर्ट संबंधी समस्याएं सुलङा सकेंगी।
भारत में एक एेसे प्रशासनिक माहौल की भी जरूरत है, जिसमें फैसले तेज रफ्तार से लिए जा सकें। प्रक्रिया में आने वाली रुकावटें ही परियोजनाओं के अमल की रफ्तार को सुस्त करती हैं और ये हालात बदलने होंगे। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन इस मामले में काफी कामयाब रही है और कोई वजह नहीं है कि सरकारी महकमे और सार्वजनिक उपक्रम इसका अनुसरण न कर सकें।
इसमें कोई शक नहीं है कि सपनों का भारत बनाने के लिहाज से पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक एेसा क्षेत्र है, जहां बड़े पैमाने पर सुधार करने होंगे। आखिरकार देश के विकास के फायदे गरीबों और गांवों तक पहुंचने ही चाहिए। दुखद बात है कि आज देश में दिख रहे समूचे विकास का अधिकांश केवल शहरी इलाकों तक ही सीमित है। मैं एक भारत की कल्पना करता हूं, जिसके हर नागरिक की पहुंच से शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार दूर नहीं होंगे। ग्रामीण इलाकों में स्कूल और हास्पिटल बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बनाने भर से ही यह सपना पूरा नहीं हो सकेगा। सरकार को यह भी तय करना होगा कि टीचर और डॉक्टर अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाएं और केवल वेतन लेने के लिए ही महज नौकरी न करें। अल्पकालिक रोजगार के अवसर मुहैया कराना भी काफी नहीं है। बेहतर यही होगा कि हमारे कृषि उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं और सैकड़ों की तादाद में वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर भी स्थापित किए जाएं।
७५ साल की अपनी उम्र में, मैंने भारत में एेतिहासिक बदलाव देखे हैं। कुछ बदलाव बेहतर थे तो कुछ बदतर। भविष्य का भारत, मुङाे पूरा यकीन है, विकसित देशों की कतार में खड़ा होगा और मैं शिद्दत से उम्मीद करता हूं कि हमारे देश की नैतिक संपदा भी बरकरार रहेगी। आखिरकार, एेसी समृद्धि के मायने भी क्या होंगे, जिसके लिए आदर्शो की कुर्बानी देनी पड़े।
- डॉ. ई. श्रीधरन
(डॉ. इलाट्टवालापिल श्रीधरन दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।)
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