Thursday, October 4, 2007

सचिन तेंदुलकर के सपनों का भारत


खेलों की अपनी दुनिया से आगे िनकल कर देखूं तो मेरे पास एक सात सूत्री एजेंडा है। यह मेरे सपनों के भारत का एजेंडा है।


1 िवदा हो गरीबी

मैं ऐसे भारत का ख्‍वाब देखता हूं िजसमें हर पेट के िलए भोजन हो; जहां कोई भूखा न सोए। मुंबई में ऐसी कई जगहें हैं जहां लोग िनयिमत तौर पर मजबूर और भूखे बंदों को खाना िखलाते हैं। मुझे लगता है ि वे एक अहम और बेशकीमती काम करते हैं।


2 सबको िमले पानी

मेरा इशारा िसर्फ महानगरों में पानी की िकल्‍लत की तरफ नहीं है। मैं उन लोगों की भी बात कर रहा हूं िजन्‍हें दूरदराज के इलाकों में पीने का पानी हािसल करने के िलए मीलों चलना पडता है। हमें ऐसी दुिनया बनानी है िजसमें अगर िकसी को प्‍यास लगे तो पानी उसे पास में ही उपलब्‍ध हो।


3 िसर के ऊपर छत

शहरों की गिलयों में बेघरबार लोगों को खुले आसमान के नीचे सोते देखना आपको भीतर तक िहला सकता है। भविष्‍य का मेरा भारत ऐसा होगा िजसमें हर सर के ऊपर एक छत होगी। िकसी को फुटपाथ पर सोने की मजबूरी का सामना नहीं करना पडेगा।


4 तालीमशुदा औरतें

मेरे सपनों के भारत में औरत और मर्द के बीच कोई भेदभाव नहीं होगा। कन्‍या भ्रूणहत्‍या जैसी कोई चीज उसमें नहीं होगी। लडिकयों की िशक्षािनवार्य होगी। औरत ही पिरवार की बुिनयाद है। वहीं आनी वाली पीढयों को गढती है। उसके साथ कोई नाइंसाफी नहीं होनी चािहए


5 सुलभ हो िचिकत्‍सा

हमारे मुल्‍क में अच्‍छे इलाज की वजह से लोगों को िकतनी तकलीफ होती है उसके बारे में मैने काफी देखा और पढा है। एक समाज के रूप में हमें सुिनशचित करना होगा ि िजस िकसी को डाक्‍टर की जरूरत हो एक अदद डाक्‍टर जरूर िमले। न सिर्फ उसका इलाज हो बल्ि पूरा इलाज हो।


6 खत्‍म हो आतंक

मैं मुंबई से हूं जहां बहुत सारे लोग दहशतगर्दी का िशकार बन चुके हैं। सारे देश में आतंकवाद की टीस िबखरी है। न जाने िकतनों ने अपने दोस्‍तों िरश्‍तेदारों को खोया है। इस पागलपन को कहीं न कहीं िकसीिकसी तरह से रोकना होगा। यह तभी मुमिकन है जब हम सब के पास आने वाले कल का एक साझा सपना होगा।


7 सहनशीलता बढे

िखर में जब मैं अपनी टीम के सािथयों पर नजर डालता हूं तो पाता हूं ि अलग अलग धर्मों अलग अलग सामािजक आर्थक पृष्‍ठभूम वाले और जुदा जुदा संस्‍कृितयों वाले चेहरे मेरे साथ हैं। ये भाइयों की तरह साथ खेलते और िनभाते हैं। सोचता हूं ि साथ साथ चलने का ऐसा नजारा सारे मुल्‍क में क्‍यों नहीं।


- सिचन तेंदुलकर

2 comments:

Rajeev Ranjan Lal said...

अच्छा प्रयास और अच्छी प्रस्तुति "बदलता भारत" के रूप में। लेकिन मात्राओं की अशुद्धियाँ बेवजह एकाग्रता भंग करती हैं। अगर उनमें सुधार हो पाए तो एक गंभीर प्रयास कहा जाएगा।
-राजीव रंजन लाल

Anonymous said...

my name mohit goyal. mai chata ho,ki sachin ne jo coment kiya hai.usse aam vyakti intrested nahi hoga.kyoki esme jyadatar batt hajam hone vali nahi hai.jab tak apne desh ke neta brstachar,ghoskhori,jati bhedbhhav aur na jane kya kya nahi chodege tab tak desh ka kuch bhi bhala nahi ho sakta vase mere sapno ka bharat aisa hona chaiye na hi khi ghoskhori ho,na hi khin bhrastachar ho,na hi khin jati bhedbhav ho.