ठोस एवं प्रभावी योजना बनाकर तथा उन्हें शत्-प्रतिशत ईमानदारी व पारदर्शिता के साथ क्रियान्वित कर के।
जनसंख्या, दहेज, भ्रूण हत्या, अंधविश्वास पर नियंत्रण करके।
स्कूलों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में नैतिक आध्यात्मिक तथा योग आधृत शिक्षा पद्घति अपनाकर।
अनुसंधान, शोध, तकनीक (खासकर रक्षा सुरक्षा प्रणाली में ) पर विशेष ध्यान केन््िरत कर।
प्राकृतिक संसाधनों का संयमित व विवेकपूर्ण उपयोग, प्रकृति से छेड़छाड़ बन्द करें, अधिकतम वृक्षारोपण एवं पर्यावरण संतुलन बनाये रख कर।
बिजली के लिए पवन, सौर, पनबिजली पर बल देकर।
औद्योगिक व खेतिहर, श्रमिक, किसान, छोटे मीडिया कर्मी को उद्योगपतियों-पूंजीपतियों, मीडिया घरानों द्वारा कमाई का एक उचित हिस्सा देकर, गरीब निस्सहाय के प्रति हमेशा मानवीय अप्रोच अपनाकर।
सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करके।
गॉव-कस्बों में शहरों जैसी सुविधाओं-संरचनाओं को पहुंचाकर।
हर तरह के धार्मिक, सांस्कृतिक-सांप्रदायिक, क्षेत्रीयता की संकीर्ण सोच व एक्शन से ऊपर उठकर तथा आत्मानुशासन को अपनाकर।
संयम, सदाचार, स्नेह-सौहार्द, प्रेम, अपनत्व, एकता, अखंडता, को चहुॅदिस सतत् फेलाकर-बढ़ाकर-अपनाकर।
धनंजय कुमार,
खरीक, भागलपुर (बिहार)
MERE SAPNO KA BHARAT HO,JAHA
(1)HAR KISI KO BHOJAN MILE
(2)HAR KISI KO ROZGAR MILE
(3)HAR KISI KO NYAYAYE MILE
(4)HAR KISI KO SAMANTA MILE
(5)HAR KISI KO JEENE KA ADHIKAR MILE
(6)HAR KISI KO MEDICAL FACILITY MILE
(7)HAR KISI KO EDUCATION MILE
IS TARAH HUM APNA BHARAT BANA SAKTE
HAI JO "SARE JAHAN SE AACHA HOGA"
FROM,
RAUSHAN
मुज़फअर्पुर, बिहार
मेरे सपनाे का भारत विकास और एकता का प्रतीक हैं। आज जिस तरह उदारीकरण का बाजार गर्म है उसने तो हमारी मूल एकता की संस्कृति को ही हिलाकर रख दिया हैं। मैं यह नहीं कहता कि विकास करना गलत है परन्तु विकास का तरीका गलत हैं। आज आलम यह हैं कि काम के अभाव में लोग अपना परिवार छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहें हैं, जिससे की हमारी अनेकता में एकता की संस्कृति खण्डित हो रही हैं और संयुक्त परिवार अल्प परिवार में विभाजित होते जा रहे हैं। इसी लिए मैं चाहता हँू कि सरकार को एसी योजनायें बनानी चाहिए जिससे उद्योग- धन्धों को गाँव में ही स्थापित किये जा सकें, जिससे कि लोगों को रोजगार भी मिल सकें और हमारी संयुक्त परिवार की संस्कृति भी बची रहें।
अनूप सरोज
एल0 एल0 बी0
ला0 वि0 वि0
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