Thursday, October 11, 2007

हमारी फौज चुस्त हो, मॉडर्न हो, घातक हो


इक्कसवीं सदी, भारत की सदी है। एक उभरती हुई महाशक्ति के तौर पर हमें इस जबरदस्त मौके को स्वीकारना ही होगा और अपने लोगों की उम्मीदों को पूरा करना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में मजबूत जगह पाने और अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने का सपना विकास की तेज रफ्तार के बिना कभी पूरा ना हो पाएगा। हमें हर स्तर पर विकास करना है, फिर चाहे वो राजनैतिक हो या आर्थिक, सांस्कृतिक हो या फौजी। इस चुनौती को देखते हुए हमें अपनी रणनीतिक स्थिति, बड़े आकार, हिन्द महासागर से अपनी नजदीकी, प्राकृतिक संपदा और युवा व मेहनतकश आबादी के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए।

महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य ने कहा था कि, ‘अगर शांति से जीना चाहते हो, तो हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहो।’ इतिहास गवाह है कि जिन देशों ने इस सलाह को नजरअंदाज किया, उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। मुल्क की हिफाजत करने के मामले में फौज हमेशा से सबसे आगे रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि इस बड़ी जिम्मेवारी का भार हमारे सैनिकों के मजबूत कंधों पर आगे भी बना रहेगा। इसीलिए जरूरत है उन्हें हमेशा तैयार रहने की और बदलावों को अपनाने की।

आने वाले वक्त और उससे पैदा होने वाले खतरों को देखते हुए हिन्दुस्तानी फौज इस वक्त आधुनिकीकरण के दौर से गुजर रही है। वो अपनी ताकत में भी इजाफा कर रही है। साथ ही, भविष्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना नए कायदे बना रही है और उन्हें अमली जामा भी पहना रही है। हमारा मकसद अपनी फौज को एक चुस्त, मजबूत और जंग जीतने वाली टीम के रूप में तैयार करना है। यही टीम भविष्य में बाहरी और अंदरूनी खतरों से हमारी हिफाजत करेगी।

सेना का पहला काम, देश को बाहरी खतरों से बचाना है। कानून और व्यवस्था कायम करने के लिए जब नागरिक सरकार बुलाए, तो उसे मदद भी करनी चाहिए। मुसीबत के वक्त लोगों की सहायता करना भी उसका काम है। दिनोंदिन छोटी होती जा रही इस दुनिया में अपने वतन की बढ़ती इज्जत के कारण हमें नए खतरों के लिए तैयार रहना होगा। सुरक्षा परिषद् के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के शब्दों में ग्लोबलाइजेशन की मुखालफत, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खिलाफत करने के बराबर है। इसलिए हम अपने आस-पास और दुनिया में शांति और सुरक्षा मुहैया करवाने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।

भविष्य की जिम्मेदारियों से ही फौज का आकार प्रकार तय होगा। इसका संबंध केवल आने वाले खतरों से ही नहीं है, बल्कि उन क्षमताओं से भी है जिसकी हमें जरूरत पड़ेगी। तकनीक और बजट भी सेना को नया चेहरा देने में अहम भूमिका निभाएगा। हमें इस मुद्दे पर डिफेंस पॉलिसी और सैन्य नियमों का भी ध्यान रखना पड़ेगा। हालांकि अब पारंपरिक जंग का खतरा न के बराबर है, फिर भी हमें इसके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। वो भी एेसे स्तर पर जहां परमाणु बम का इस्तेमाल हो सकता है। हमें गैर परांपरगत युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए।

इस खतरे से निपटने के लिए हमारी सेना के तीनों अंगों को मिलजुलकर तैयारी करनी चाहिए। फौज में जमीन, हवा और पानी में अपने दुश्मनों के दांत खट्टे करने का माद्दा होना चाहिए। साथ ही, हमें साइबर स्पेस और अंतरिक्ष के इस्तेमाल पर भी ध्यान देना चाहिए। भविष्य की सेना को क्वांटिटी की जगह क्वालिटी पर ध्यान देना पड़ेगा। जहां तक मैनपॉवर का सवाल है, हमें अपनी फौज का सही आकार तय करना पड़ेगा। इसका हल हमें क्षेत्रीय सेना और रिजर्विस्ट फौज में मिल सकता है। साथ ही, पैरा-मिल्ट्री फोर्स और कें्रीय पुलिस बलों में आधुनिकीकरण से भी हमारा बोङा कम होगा।

अगर क्वालिटी की बात करें, तो हमारा यादा जोर क्षमता बढ़ाने और समंदर में सुरक्षा मुहैया करवाने पर है। हमें मॉडर्न और अचूक निशाने वाले हथियारों की जरूरत पड़ेगी। इससे अलग-अलग रहते हुए भी अपनी सेना एक साथ हमला कर सकेगी। हमारे दुश्मन को घुटनों के बल आना ही पड़ेगा। इसके लिए जरूरत है, एक मजबूत फौज की। एक एेसी फौज, जो हवा से हमला कर सके और पानी और जमीन में भी दुश्मनों को मात दे सके। इस वास्ते हमें स्पेशल फोर्स बनाने पड़ेंगे। साथ ही, अपनी रणनीतिक ताकतों और पैराट्रप्स के लिए जरूरी क्षमताओं पर भी ध्यान देना पड़ेगा। भविष्य में आतंकवादियों, सम्रुी लुटेरों और दूसरे खतरों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है।

इन सबके अलावा, हमें अपने दोस्त मुल्कों के साथ मिलकर ऑपरेशन चलाने के लिए भी खुद तो तैयार रखना चाहिए। इसके लिए जरूरत है, साङा युद्धाभ्यास की। हालांकि, हमारा देश केवल संयुक्त राष्ट्र के ङांडे तले अपनी फौज भेजता है। लेकिन हो सकता है कल को हमें उसकी सहमति वाले किसी ऑपरेशन में हिस्सा लेना पड़ेगा, जिसमें ङांडा किसी और का हो।

अपनी ताकत बढ़ानी है तो हम तकनीक को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इससे हम आज के खतरों से निपट सकते हैं। आज आईटी जंग का एक नया मैदान बन चुका है। इसीलिए हमें जरूरत पड़ी सी४आई२एसआर (कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर्स, इनफोर्मेशन, इंटेलिजेंस, सर्विलेंस और रिकॉन्सेंस) कैपिबिलिटी की। इससे हम जंग के कई मैदानों में दुश्मन को मात दे सकते हैं। तकनीकी विकास का फौज के आधुनिकीकरण से गहरा नाता है। इसी वजह से हमें जरूरत है, तकनीकी रूप से सक्षम मेहनतकश लोगों की। हमें बस सेना के भीतर ही तकनीकी शिक्षा पर जोर नही देना चाहिए, बल्कि बेहतर लोगों को भी चुनना पड़ेगा। यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है कि हमें फौज को यादा लुभावना बनाना है।

देश की तेज ग्रोथ रेट को सेना और समाज का भी ध्यान रखना चाहिए। हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कहना है कि दुनिया में केवल ताकत की पूजा होती है। अगर देश महफूज न होगा, तो विकास की तेज रफ्तार और आर्थिक प्रगति बेमानी, बेमतलब हो जाएगी। हमें शांति और सुरक्षा के लिए कीमत तो चुकानी पड़ेगी। किसी भी खतरे की हालत में दांव पर पहले की तरह बहुत कुछ लगा होगा। पुरानी कहावत है, जंग में कोई उप-विजेता नहीं होता। इसीलिए हम फौजियों को अपने हमवतनों के भरोसे को साबित करके दिखाना पड़ेगा। हम बदलावों को गले से लगाने के लिए जाने जाते हैं। हमें अपनी इस पहचान की लाज रखनी ही पड़ेगी। यह हमारी वो ताकत है, जिसकी वजह से हमारे दुश्मनों ने हमेशा मुंह की खाई है।

जनरल जे.जे. सिंह

पूर्व सेनाध्यक्ष

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