Monday, October 22, 2007

मेरी उम्‍मीदों में बसा भारत

हमारा भारत पूरी दुनिया का फिर से मार्गदर्षक बनेगा क्याेकिं मेरा यह मानना है कि इतिहास अपने आप को दुहराता है। और खुदा का षुक्र है कि हमारे पीछे हमारा मज़बूत और स्वíनर इतिहास है। अपने आप को और समृद्घ करने के लिए हमें न्यायपालिका और विधायिका के अंतर को और स्पष्ट करना होगा। जिसके लिए विधायिका के अधिकारों में थोड़ी कमी की जा सकती है। क्याेकि लोकतंत्र अब भीड़तंत्र बनता जा रहा है। अपने स्वíणर्म अतीत को साथ लेकर दुनिया का सबसे युवा देष पूरे विष्व को गति के पथ पर ले जाएगा।

पल्लवी राय

नई दिल्ली






Mere sapno ke Bharat me shiksha ka adhikar sarvabhaumik hoga, jahan har dabe-kuchle mazloom ko aage badhne ke liye aarakshan ki baisakhi ki jaroorat nahi hogi। Mera bharat aarthik aur rajnitik hi nahi, sanskratik mahashakti bhi hoga. Jahan gavon aur kasbon me bhi aadharbhoot suvidhayen hongi aur shahron ka suniyojit vikas hoga. Har tabke, har jaati, har dharm, har ling, har kshetra ke logon ko ye mulk aur iske log apne mahsoos honge. Yuva pratibha ko palayan nahi karna padega,Kisanon ki aatmhatya karne ki khabarein sunne ko nahi milengi. Jansankhya santulit hogi aur bhrun hatya khatm ho jane par linganupaat barabar ho jayega.





Nishant Jain
Meerut college,मीरुत



A man used 2 spit every where on the road/street,and was very much defamed in the society as a bad man.While he was going to die he requested his son that once I want to hear by public that I was a good person.The son honoured his dad & stood in the mid of the crossing & started spitting all around.People saw himand said his father was good than him.DTC/blue/red line r like father & son.
While public transport was not there DTC was the only option & equally inconvinient to the public as blue line.The drivers r not interested to stop the bus on regular stop,they want there should not any break in the bus,it should only at the end pont.They also pick & get down travellers in the mid of the road.Driver/conductors r rude behaved.Buses r not properly cleaned,engines r noisy.
Driver conductors should not be on permanent job.Complaint right should be welcomed.
Dr.A.K.जैन
ROHINI-110085, डेल्ही

Tuesday, October 16, 2007

" मेरे सपनों का भारत "

ऐसा भारत, जिसका समाज छल , दंभ , द्वेष , पाखंड ,झूठव अन्याय से मुक्त ,
समतायुक्त , ममतामय ,परस्पर स्वावलंबी व परस्पर पूरक हो और जिसमें
ग़रीबों व किसानों के चेहरे पैर लाली , खेतों में हरियाली
और आँगन में ख़ुशिहाली हो ,मेरे सपनों का भारत होगा 1
पवन कुमार अरविंद
उम्र- 26 वर्ष






न बेरोजगारी का जाल होगा, न विदर्भ जैसा हाल होगा

तारीखों की जगह न्याय हर बार होगा

सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा का प्रसार होगा

हर खेल में अव्वल होगा

बिजली, सड़कें, पानी हर ओर होगा

स्त्री शिक्षा पर जोर होगा, अपनी सभ्यता का डंका हर ओर होगा

बाल मजदूरी और शराब पर पहरा होगा

हर तरफ खुशहाली का चेहरा होगा

दहेज, बलात्कार न कत्ल होगा, रोटी, कपडा और मकान होगा

सांप्रदायिकता और बैर न होगा, पांखड़ और द्वेष न होगा

हर तरफ कशमीर जैसा स्वर्ग होगा, निठारी जैसा नरक न होगा

संसद में सिर्फ काम होगा, मंहगाई का नाम न होगा

आंतकवाद का खौफ न होगा, भ्रष्टाचार का रौब न होगा

ईद, दिवाली, क्रिसमस और दशहरा दिन रात होगा

दुनिया में खुशहाली की कहावत होगा

ऐसा मेरा सपनों का भारत होगा

प्रदीप सिंह रावत

३२-ई, आराम बाग, पहाड़गंज



Monday, October 15, 2007

हमारे भी सपने

हमारा सपना एक ऐसे विकसित भारत का सपना है जिसमें जनसंख्या का परिमाण स्थिर होगा जनता का मत व्यवहार जाति और धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सरकार की नीतियों, उपलब्धियों एवं दक्षता के मूल्याँकन के आधार पर होगा। भारतीय राजनीति में ये सर्वप्रमुख आवश्यकता है जब जनता में राष्ट्रीयता और विकास के प्रति ऐसी भावना जागृत की जा सके जब राजनैतिक दल जनता को जाति, धर्म, नृजातियता एवं समुदाय या संप्रदाय के आधार पर विभाजित न कर सकें। यदि ऐसा हुआ तभी राष्ट्रीय विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना सम्भव हो पायेगा। सामाजिक, आर्थिक लक्ष्य राजनैतिक प्रणाली निर्धारित करती है और राजनीति में सरकार का चुना जाना जनता पर निर्भर करता है जब जनता शिक्षित होगी राष्ट्रीय हितों के प्रति जागरुक होगी तो वो ऐसे नेता चुनेगी जिनका दृष्टिकोण विकास उन्मुख एवं राष्ट्रीयता से परिपूर्ण हो और जो किसी जाति किसी सम्प्रदाय के प्रतिनिधि न बनकर राष्ट्रीय विकास की संकल्पना का प्रतिनिधित्व करे। अर्थात विकसित भारत के सपने के पीछे छुपी हुई असंख्य पूर्वापेक्षायें हैं जिनका पूर्ण होना आवश्यक है।

-Manish Misra
Lucknow


मेरे सपनों का भारत-

जहॉ हर दिमाग में तकनीक बसती हो

बेराजगारी जहॉ न रहती हो

हर घर सुख समृद्घि से भरा हो

और जाे कोई उनके मातृभुमि पर ऑख उठाये

हिन्दु हो या मुसलमान मुॅह तोड कर उन्हे भगाये

नाम-अर्पित किषोर

उम्र-२0





EK BAR PHIR DHARAM GURU HO
EK BAR PHIR SONE KI CHIRIYA
HO PATH PRADARSHAK VISVA KA
AESA MERE SPNO KA BHARAT

JAHAN KOI JAN SOYE NA BHUKA
JAHAN PADE NAHI KABHI SUKHA
CHARON TARAF PHELE KHUSHYALI
LEHLAHAYE FASAL CHAHUN AUR HARIYALI

HO NA KOI BEROJGAR YAHAN PAR
AISA CHAMAKTA HO MERA BHARAT

MAHILAO (WOMEN) KI GHAR GHAR ME POOJA
UNKO MELE NA SAMAJ ME STHAN DOOJA
CHAHUN AUR LAXMI KI VARSHA
PHIR BHARAT KA JAN JAN HARSHA

MANMOHAN KI YAHI DUA HAI
AESA MERE SAPNO KA BHARAT


MANMOHAN SHARMA
EDITOR
OM SRI KHATU SHYAM SHARNAM

MERE SAPNO KA BHARAT- EK AISA DESH JO SARI DUNIYA KA NETRITWA KARE.

MERE SAPNO KA BHARAT EK AISA DESH HAI JO PRAGATISHIL NAHI BALKI DUNIYA KE SARE VIKSIT DESO KA NETRITWA KARNE WALA HOGA.

JAHAN NA TO GARIBI HO NA BEROJGARI HO NA JATIWAD HO NA ASIKSHA HO.LADKIYON KE SAATH BHEDBHAW NA HO KYONKI WE HAMARE DESH KI AADHAR HAI.

BHARAT PRATIBHAWO SE BHARA PADA HAI,YUWAON KI PRATIBHA KO NAI DISHA MILE.

DESH KI BAGDOR UN WYAKTIYON KE HATH HO JO WYAKTIGAT RAJNITI CHHODKAR DESH KI SAMPURNA VIKASH KE LIYE APNE AAP KO NYOCHHAWAR KAR DE.

HAR JARURATMAND WYAKTI KO USKE JARURAT KI WASTU MILE TAKI AATANKWAD KA SAFAYA HO SAKE.

CHARO OR AMAN AUR SANTI HO.

YAHI HAI MERE SAPNO KA BHARAT JO SARE JAHAN SE ACHHA HO.

AVINASH KUMAR CHANDAN

AGE-18

Mere bahart ke vikas ko rafftar dene k liye jaruri he uski population ki rafftar ko kam krna..kyoki population hi 1 aise cheez he jo aur shetro me badha ban rhi he..population se berojgari, garibi or hinsa ye sub cheeze apne paw psaar rhi he..or jub population pr mera desh control kr lega to me b khungi thet
" speed, love n INDIA have no limitaion to prosead" .....!!!!

anu singh
student of DU (ram lal anand college)

Friday, October 12, 2007

2020 का भारत

मेरे सपनों के भारतीय, उपभोक्ता जागरूक और षिक्षित हो। हिन्दुस्तान के प्रत्येक उपभोक्ता को अपने अधिकारों और कत्र्तव्यों का बोध है। अपनी जि़म्मेदारियों का एहसास हो। बाज़ार में बिकने वाले असली और नकली सामानों का ज्ञान हो। जिससे उत्पादक, उपभोक्ताओं को विज्ञापनों की भुलभूलैया के मकडाल में नहीं फंसा सकें।

आज विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाजसेवा और राजनीति में युवाओं का जमाना है। मेरे सपनों के भारत में देष के नौजवान विदेषी चमकचौंध से बाहर निकलकर देष के गांवों के विकास की ओर बढ़े। मेरा सपना भारतवर्ष के गांवों में उपभोक्ता आंदोलन को मजबूत करना तथा देष से बाल मजदूरी को खत्म करने बच्चों को जागरूक बनाना है।

प्रमोद पंत
उम्र : २९ वर्ष



भारत को और अधिक ताकतवर एवं मजबूत बनाने के लिए हमें अपनी पंचायतों और नगरनिकायों को अत्यंत सुदृढ़ बनाना होगा । आतंकवाद एवं नक्सलवाद का डटकर सामना करने के लिए पुलिस एवं अन्य सषस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार, तकनीक एवं प्रषिक्षण उपलब्ध करवाया जाए । राजनीति के साथ- साथ हर क्षेत्र में स्वच्छ छवी वाले युवाओं की अधिकाधिक भागीदारी हो । व्यावसायिक के साथ-साथ पारंपारिक विषयों की षिक्षा के उन्नयन की भी आवष्यकता इत्यादि । परन्तु हमें ये बात हमेषा याद रखनी चाहिए कि ष् हम सुधरेंगे जग सुधरेगा ’।


प्रियभांश









२०२० तक भारत एक विकसित देश बने हमारे साथ जो विश्व मैं नस्ली भेद - भाव होता रहा है उनलोगों को हमारी ताकत और ज्ञान का अनुभव हो । सभी छेत्रो मैं औरतो की भागेदारी बडे सभी शिछित हो और कोई बेरोजगार न हो बाहेय आडम्बर साम्प्रेदायिक दंगो और भ्रेस्टाचार का सफाया हो . सभी को समान अवसर प्राप्त हो न कोई जनरल न ओबीसी न एस सी न एस टी हो , सब समान हो यही है मेरे सपनो का भारत .

जावेद अखतर
बीए हिंदी , जामिया



Mai chahta ho ki bikas ke moodo par rajnitik dalo me matbhed na ho khaskar parmanu karrar tatha Iran gas pipe line par kyo ki ane wale dino me desh ka bikas bijali aur gas par hi nirbhar karega ager agale 10 barso me desh ke sabhi gharo me bijali pahoch jai to nischit roop se usase sabhi ka bikas hoga।Sath hi des me sadak pariwahan tatha railway me bhi aur sodhar ki kafi gunjaish hai kyoki ye bikas ke leye mokhya adhar hai .Bihar jaise rajyo me jaha har saal badh se bhyankar tabahi hoti hai waha nadi jodo yogana par torant amal soru karana bahut hi jarori hai.

-Ranjit singh Banty , Age - 28




1. Only well educated,successful and renowned personalities should be groomed for public office. They must be experts and achievers in their respective fields.A set of targets should be assigned to them in a definite time frame and their performance must be evaluated in a Corporate manner.
2. Thurst should be given to Education,Health and Infrastructure.
3. All Govt rules must be revised to make them simpler,clearer and unambiguous. No discretionary powers must rest with anybody. All the rules must be on the Internet and should be available to public.
4. All the tax structures to be revised to make it simpler. It should have simple slabs. The products may have uniform sales,excise and custom taxes.
5. Police,army,para-military and Govt officials -- must have highest level of salaries in the country to attract the best available talents. Moreover, on the pattern of I.I.T.s, special colleges must be run to train and groom Police,army,para-military and Govt officials with admission through open competition after 10+2 and not after Graduation.

Only then 'India Shining' shall be a reality.

अशोक

महाशक्ति बनने का बस एक ही मंत्र.. तकनीक


एक अरब की आबादी वाला मुल्क भारत, दुनिया की शीर्ष तीन आर्थिक महाशक्तियों में शामिल होने की राह पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहा है। लेकिन हकीकत का एक और चेहरा भी है। प्रति व्यक्ति के लिहाज से भारत की औसत घरेलू आय ७५0 डॉलर है, जो कि सभी ५३ अफ्रीकी देशों से भी २0 फीसदी कम है। यही वजह है, आज भारत की क्षमताओं और इसकी हकीकत के बीच खाई को पाटने की सख्त जरूरत आन पड़ी है। यह न केवल सिर्फ भारत के लिए जरूरी है बल्कि दुनिया की भलाई के लिए भी इसे अंजाम दिए जाने की अहमियत है। भारतीय कायाकल्प के जरिए ही दुनिया की शक्लो-सूरत में इस लिहाज से आमूल-चूल बदलाव लाया जा सकता है कि इससे न सिर्फ क्षेत्रीय भेदभाव मिटेगा बल्कि हर कहीं लोगों के जीवनस्तर को भी बेहतरीन बनाया जा सकेगा। वह इसलिए क्योंकि हमारी धरती पर रहने वाले समूचे इंसानों में से हर छठा शख्स इसी देश में रहता है। इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए भारत को तरजीही तौर कुछ चीजों को करना होगा। हालांकि मेरे एजेंडा के मुताबिक, जरूरत हमारी अर्थव्यवस्था के हर पहलू में तकनीकी विकास की है और इसे ही हमारी सामाजिक समस्याओं से निबटने के लिए प्रमुख हथियार बनाने की है।

दुनिया की आर्थिक महाशक्तियां तकनीक के मामले में भी अगुआ हैं। अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग २८ प्रतिशत तकनीकी सेक्टरों से ही आता है। तकनीक के विभिन्न आयामों का इस्तेमाल करके हम भारत के भी कई क्षेत्रों का कायाकल्प कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, तकनीक की मदद से कृषि उत्पादन को उल्लेखनीय तौर पर बढ़ाया जा सकता है। मेरा मानना है कि कृषि क्षेत्र में एक बार फिर से आर्थिक और सामाजिक विकास का इंजन बन कर उभरने की कुव्वत है। भारत के किसान अर्थव्यवस्था में खतरे के मुहाने पर सबसे आगे खड़े हैं। वे मौसमी अनिश्चितताएं ङाेलते हैं, उत्पादन की बिकवाली के उनके पास कोई भरोसेमंद स्रोत नहीं होते, उत्पादों के बदले बेहद कम रकम उनकी जेबों में आती है, बाजार के खेल में ये कीमतें तय होती हैं, संसाधनों की उनके पास उपलब्धता बेहद कम और स्तर बेहद घटिया होता है और इन सबसे ऊपर निजी संस्थाओं से कर्जा लेने की सबसे यादा कीमत उन्हें ही चुकानी पड़ती है। दुर्भाग्य से, उन्हें फसल की कम कीमत, कम निवेश, कम उपज और कम आमदनी के सिस्टम का शिकार होना पड़ता है। संसाधनों की कमी उन्हें हर चीज के लिए ङाेलनी पड़ती है, चाहे वह जमीन हो, पानी, फसल का पोषण या फसलों की सुरक्षा। यह एक विरोधाभास है। क्योंकि दूसरे मुल्कों से अगर तुलना की जाए, खासतौर पर अमेरिका और चीन से, तो भारत के पास सबसे यादा अनुपात में खेती योग्य जमीन है। सच तो यह है कि समूचे एशिया में ३0 प्रतिशत सिंचाई वाली जमीन भारत में ही है।

भारत में इतनी कुव्वत है कि वह मौजूदा कृषि उत्पादन में १0 गुना का इजाफा कर सके। इस्राइल में खेती योग्य जमीन पर प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि उत्पादन से ५.८ मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई होती है। भारत में यह केवल ८८,000 अमेरिकी डॉलर है। २00६-0७ के आर्थिक सर्वे ने कृषि क्षेत्र की कुछ ढांचागत कमोजरियों की ओर इशारा किया है, जिसमें गेहूं और चावल की यादा उपज वाली नई प्रजातियों की घटती उपज क्षमता, फर्टिलाइजरों का असंतुलित इस्तेमाल, बीजों की वापसी के कम दाम और कमोबेश सभी फसलों की प्रति यूनिट एरिया में कम होती उपज शामिल हैं। कृषि विकास पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि बुआई की कुल जमीन का तकरीबन ६५ फीसदी हिस्सा अभी बरसात पर ही निर्भर है।

एेसी ही कहानी पानी की भी है। भारत हर साल मिलने वाले ४000 बिलियन क्यूबिक मीटर ताजे पानी का केवल एक चौथाई हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाता है। इसकी वजह सीमित जमीनी दायरे तक इसकी पहुंच, जल संसाधनों का असमान वितरण और कम बांध क्षमता हैं। कृषि उत्पादन में इस्तेमाल पानी के महज १४वें हिस्से को ही बेहतरीन श्रेणी में रखा जा सकता है।

हमने औद्योगिक क्रांति के मौके को गंवा दिया और पीछे छूट गए। सौभाग्य से, हम फिर से दौड़ में शामिल हो गए क्योंकि उपनिवेशवादी शासन से आजादी के तुरंत बाद बने उच्च शिक्षा के संस्थानों प्रशिक्षित श्रमशक्ति के खजाने से हमें मालामाल कर दिया। आर्थिक सुधारों ने हमारी नई पीढ़ी की उद्यम ऊर्जा शक्ति को अडिग बना दिया और ग्लोबलाइजेशन ने संभावनाओं के नए दरवाजे खोल दिए। हम लोगों को इस नींव को और मजबूत बनाना है और दरवाजा खटखटाती संभावनाओं का पूरा फायदा उठाने से कतई चूकना नहीं है।

यादा उपज वाली हाइब्रिड फसलों के जरिए हरित क्रांति करके हमने एक एेतिहासिक काम किया है। लेकिन तब से, कृषि में तकनीकी विकास की हमारी रफ्तार सुस्त रही है। आज, भारत को सूखे और रासायनिक कारकों से अप्रभावित फसलों के लिए तकनीक के विकास की जरूरत है।

तकनीक भारत के समाज की कायाकल्प करने का माद्दा भी रखती है। यह हर व्यक्ति को अलग-अलग तौर पर अपनी सामथ्र्य बढ़ाने में भी मदद कर सकती है। सच्ची ताकत वही है, जिसके जरिए कोई भी शख्स अपनी तकदीर की इबारत में कुछ फेर-बदल करने या फिर उसे नया आकार देने की कुव्वत दिला सके। मेरे विचार से, पूरी दुनिया, गुट में रचने-बसने वाली शक्ति से हर व्यक्ति विशेष में रचने-बसने वाली शक्ति की ओर बढ़ेगी। तकनीक की मदद से ही यह बदलाव संभव है। तकनीक हर शख्स को चुनने, संवाद करने, जुड़ने और कुछ नया करने की क्षमता दे सकती है।

तकनीकी क्रांति की राह पर चल कर, हर शख्स किसी उत्पाद का निर्माता बनने की ताकत पा सकेगा या फिर अपनी पसंदीदा सेवाओं को चुन सकेगा, चाहे वह ऑटोमोबाइल हो, होटल का कमरा हो या पालतू जानवर का क्लोन। हर शख्स के पास क्षमता होगी कि दुनिया के किसी भी कोने पर बैठे दूसरे शख्स से वह संवाद कर सके, कभी भी और किसी भी तरीके से। हर शख्स के पास यह क्षमता होगी कि दुनिया में होने वाली व्यक्ति विशेष की या सामूहिक गतिविधि से जुड़ सके या उसमें शामिल हो सके। हर शख्स के पास यह क्षमता होगी कि वह यादातर उत्पादों को खुद बना सके या फिर यादातर सेवाओं का फायदा उठा सके।

नए मोर्चो पर इंसानी फतेह की कहानी अनादि-अनंत है। नए विचारों को अपनाने की होड़ संक्रामक होती है। इस संक्रामक उत्सुकता को शिक्षा के प्रसार. जागरूकता और आय की मदद से बढ़ाया जा सकता है, खासतौर पर पिरामिड की निचली सतह पर आने वाले लोगों का स्तर ऊपर उठा कर। बहुत से मोर्चे अभी नाममात्र को ही फतेह हो पाए हैं- जैसे सामथ्र्य में इजाफा, आयु और जीवनस्तर, दिमाग की गुत्थियां, अंतरिक्ष के रहस्य और सागर की गहराइयों की दुनिया। तकनीक भारत और भारतीयों को एेसे ही नए मोर्चो को फतेह करने में मदद कर सकती है।

भारत में वह सारे गुर मौजूद हैं, जिनसे वह तकनीकी क्षमता से लैस मुल्क की शक्ल अख्तियार कर सके। इसके पास शिक्षित और प्रशिक्षित पुरुषों-महिलाओं की एक बड़ी तादाद है, विज्ञान और तकनीक की शिक्षा के लिए दुनिया के चंद बेहतरीन संस्थान हैं और निजी क्षेत्र की उत्साहजनक उत्पादक ऊर्जा भी है। हमें इन खूबियों को पहचानने की और अपने मुल्क के लोगों और संस्थानों को विश्वस्तरीय ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए आजादी देने की जरूरत है।

भारत को कायाकल्प कर सकने वाली तकनीकों पर अपना ध्यान कें्िरत करना चाहिए। मेरे विचार से, आधुनिक दवाओं, वैकिल्पक ऊर्जाओं, नेटवर्क कम्युनिकेशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, प्रदर्शनकारी पदार्थो, बायोटेक्नॉलजी, नैनोटेक्नॉलजी, रोबोटिक्स, ऑटोमेशन और एयरोस्पेस के क्षेत्रों में खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

विकसित मुल्कों में बहुत सीतकनीकें निजी क्षेत्रों की उपज हैंइनका विकास पब्लिक फंड के जरिएहुई रिसर्च, बड़ी कंपनियों कोपरंपरागत कारोबार से मिले जरूरतसे यादा पैसे, बौद्धिक संपदा केसंरक्षण, उत्साहजनक उपक्रमों मेंपूंजी निवेश, प्रतिस्पद्र्धी बाजार औरइन सबसे ऊपर एकेडमिक रिसर्चरोंके लिए अनुकूल माहौल की बढ़तीमांग से हुआ हैनिजी क्षेत्रों मेंक्रांतिकारी क्षेत्रों की पहचान, रिसर्चपर यादा खर्च और अग्रणी कंपनियोंद्वारा रिसर्च के क्षेत्र में पूरी शिद्दत सेउतरने से भारत में भी एेतिहासिकअविष्कार हो सकते हैंभारत कोअविष्कारी ऊर्जा का कें्र बननाहोगा अगर यह दुनिया की आर्थिकमहाशक्ति बनने का ख्वाब रखता हैतोविकास के अपने एजेंडा मेंभारत को तकनीक का स्थान सबसेऊपर रखना ही होगा

मुकेश अंबानी

चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड

India Of My Dreams


कक्षा 6 में मुझसे पहली बार मेरा पूरा नाम पूछा गया ,उस समय से लेकर आज तक बहुत से लोगों ने बहुत बार मुझसे मेरा पूरा नाम पूछा। मै आप से अपेक्षा करता हूँ कि भारत में पूरे नाम का मतलब क्या होता है ।मै आने वाले समय में ऐसे भारतीय समाज की परिकल्पना करता हूँ जब नामों से 'जाति' की विभक्ति हट जाये । चौहान ,गुर्जर ,अवस्थी ,द्विवेदी हो या फिर खान ,इकबाल या मसूद ..............मैने आम पहचान के लिए सामाजिक वर्गीकरण के इस ढांचे और स्वरूप में झांकने की सम्पूर्ण कोशिश की परंतु अफसोस .....ये घटने के स्थान पर और बढता जा रहा है।मै कल्पना करता हूँ ऐसे भारत की जिसमें पर्याप्त संसाधन हो और उनका समुचित प्रयोग किसी भी वर्ग विशेष को पिछडा या अनुसूचित न रहने दे ।


मुद्रा स्फीति की दर ,आर्थिक सूचकांक ,खेलों में भारत ,विश्व पटल पर मजबूत भारतीय होना तब तक गर्वाभुनूति नहीं करा पाते जब तक सामाजिक कुरीतियां इस समाज में व्याप्त है ।एक बार एक जर्मन अधिकारी नें बात करते हुए मुझसे Dowry का मतलब पूछा ,और लड़कियों को जला कर मारने का कारण । शायद हम में से किसी भारतीय के पास इसका जबाब न हो लेकिन इन्हे बदलने का जज्बा अवश्य है ।


मेरी पीढी नें बदलते हुए भारत को देखा है ,और साथ में बदलती हुई सोच को भी।एक ओर मेरे गांव में आज हुक्का पीने का चलन खत्म हो गया तो दूसरी ओर होली पर सभी जाति के लोगों को गले लगाने का प्रारम्भ भी हुआ है ।प्रधान एक ऐसी महिला है जो अपने निर्णय स्वयं लेती है ।मुझे प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों के अनुपात देखकर खुशी होती है जो आज से 10 वर्ष पूर्व नगण्य थी ।खुशी है कि लोगों के जीवन यापन का स्तर भी बढ गया है।


मैने RTO और तहसील के आफिसों के बाहर अक्सर कई दलालों को घूमते हुए देखा है ।भीड़ भाड़ से ये लोग अक्सर रेलवे स्टेशन के कुलियों की तरह नजर आते हैं ।मै आने वाले समय में इस प्रकार के आम आफिसों को IT Enabled एवं Single Window System या सुविधा खिडकी के रूप में देखना चाहता हूँ ।


कुल मिलाकर मै एक नैतिक रूप से मजबूत राष्ट्र की परिकल्पना करता हूँ ।मै सबसे अधिक भ्रष्ट राष्ट्र से निकलकर सबसे उन्नतशील राष्ट्र का सपना देखता हूँ । ये एक सुबह का सपना है जिसको सच होना ही है ।आइये हम सब देश के आम नागरिक अखबारों और स्तम्भों की दुनिया से निकलकर मजबूत राष्ट्र की नींव रखें ।


पवन कुमार

अधिकारी, भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन




  • The India of my dreams is a better place for women. Where not only can we walk on streets without being ogled at, commented upon and harassed, but girl babies are given a chance to live, study and be proud of being women.
  • The India of my dreams has good roads connecting even the remotest villages, from Kashmir to Kanyakumari, from Nagaland to Gujrat.
  • The India of my dreams is corruption free and I don't have to worry about bribing the babus just to get my letters delivered properly.
  • The India of my dreams is not divided by state, religion, caste etc.
  • And last but not the least, the India of my dreams is led by Leaders, Real leaders who work towards making India a nation to reckon with.
Shweta
(Computer Professional, Infosys)



MERE SAPNO KA भारत JAHAN
  • garibi na ho
  • prasasan sahayogi ho
  • gram sahar ka bhed na ho
  • twarit nyaya mile
  • saman siksha ho
  • bhartiyata ke saath-saath ham aadhunik bhi ho
  • bhartia yogyta ki srestha samjhi jay
  • yojnaye jarooratmandoo tak pahuche
  • bhartia sirf apne ko bhartia samjhe.
---दर्शन



Kya Duniya main kisi bhi desh ke logo ne apne desh ko badla hai ?
NAHI. aaj tak kisi desh ke nagrikon ne apne desh ko nahi badla hai.
Desh ke nagriko ne apne aap ko badla hai.
Naye sapne dekhe hai
Un sapno ko sach kiya hai.
Desh ko apne aap se bada samjha hai.
Desh ko nahi badla, khud ko badla
To apne aap ko badlo, Bharat ko nahi.
Apne aap ko kaise badalna hai ye sabse bade sawal hai ?
Hum kaise badlen ki bharat bhi japan ke barabar main khada ho.
Hamari Nitiyan kya ho ?
Hum unhe implement kaise karen ?
Ye sabse bada sawal hai.
Bhart ko chahiya ek
Rajeev Gandhi
Abraham Lincon
Joseph Stalin
Sridharan
APJ कलम

- दीपक िबष्‍ट


Thursday, October 11, 2007

भारत, जो मेरे सपनों में बसता है।


ठोस एवं प्रभावी योजना बनाकर तथा उन्हें शत्-प्रतिशत ईमानदारी व पारदर्शिता के साथ क्रियान्वित कर के।

जनसंख्या, दहेज, भ्रूण हत्या, अंधविश्वास पर नियंत्रण करके।

स्कूलों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में नैतिक आध्यात्मिक तथा योग आधृत शिक्षा पद्घति अपनाकर।

अनुसंधान, शोध, तकनीक (खासकर रक्षा सुरक्षा प्रणाली में ) पर विशेष ध्यान केन््िरत कर।

प्राकृतिक संसाधनों का संयमित व विवेकपूर्ण उपयोग, प्रकृति से छेड़छाड़ बन्द करें, अधिकतम वृक्षारोपण एवं पर्यावरण संतुलन बनाये रख कर।

बिजली के लिए पवन, सौर, पनबिजली पर बल देकर।

औद्योगिक व खेतिहर, श्रमिक, किसान, छोटे मीडिया कर्मी को उद्योगपतियों-पूंजीपतियों, मीडिया घरानों द्वारा कमाई का एक उचित हिस्सा देकर, गरीब निस्सहाय के प्रति हमेशा मानवीय अप्रोच अपनाकर।

सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करके।

गॉव-कस्बों में शहरों जैसी सुविधाओं-संरचनाओं को पहुंचाकर।

हर तरह के धार्मिक, सांस्कृतिक-सांप्रदायिक, क्षेत्रीयता की संकीर्ण सोच व एक्शन से ऊपर उठकर तथा आत्मानुशासन को अपनाकर।

संयम, सदाचार, स्नेह-सौहार्द, प्रेम, अपनत्व, एकता, अखंडता, को चहुॅदिस सतत् फेलाकर-बढ़ाकर-अपनाकर।

धनंजय कुमार,

खरीक, भागलपुर (बिहार)




MERE SAPNO KA BHARAT HO,JAHA

(1)HAR KISI KO BHOJAN MILE

(2)HAR KISI KO ROZGAR MILE

(3)HAR KISI KO NYAYAYE MILE

(4)HAR KISI KO SAMANTA MILE

(5)HAR KISI KO JEENE KA ADHIKAR MILE

(6)HAR KISI KO MEDICAL FACILITY MILE

(7)HAR KISI KO EDUCATION MILE

IS TARAH HUM APNA BHARAT BANA SAKTE

HAI JO "SARE JAHAN SE AACHA HOGA"

FROM,

RAUSHAN

मुज़फअर्पुर, बिहार





मेरे सपनाे का भारत विकास और एकता का प्रतीक हैं। आज जिस तरह उदारीकरण का बाजार गर्म है उसने तो हमारी मूल एकता की संस्कृति को ही हिलाकर रख दिया हैं। मैं यह नहीं कहता कि विकास करना गलत है परन्तु विकास का तरीका गलत हैं। आज आलम यह हैं कि काम के अभाव में लोग अपना परिवार छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहें हैं, जिससे की हमारी अनेकता में एकता की संस्कृति खण्डित हो रही हैं और संयुक्त परिवार अल्प परिवार में विभाजित होते जा रहे हैं। इसी लिए मैं चाहता हँू कि सरकार को एसी योजनायें बनानी चाहिए जिससे उद्योग- धन्धों को गाँव में ही स्थापित किये जा सकें, जिससे कि लोगों को रोजगार भी मिल सकें और हमारी संयुक्त परिवार की संस्कृति भी बची रहें।

अनूप सरोज

एल0 एल0 बी0

ला0 वि0 वि0

हमारी फौज चुस्त हो, मॉडर्न हो, घातक हो


इक्कसवीं सदी, भारत की सदी है। एक उभरती हुई महाशक्ति के तौर पर हमें इस जबरदस्त मौके को स्वीकारना ही होगा और अपने लोगों की उम्मीदों को पूरा करना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में मजबूत जगह पाने और अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने का सपना विकास की तेज रफ्तार के बिना कभी पूरा ना हो पाएगा। हमें हर स्तर पर विकास करना है, फिर चाहे वो राजनैतिक हो या आर्थिक, सांस्कृतिक हो या फौजी। इस चुनौती को देखते हुए हमें अपनी रणनीतिक स्थिति, बड़े आकार, हिन्द महासागर से अपनी नजदीकी, प्राकृतिक संपदा और युवा व मेहनतकश आबादी के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए।

महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य ने कहा था कि, ‘अगर शांति से जीना चाहते हो, तो हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहो।’ इतिहास गवाह है कि जिन देशों ने इस सलाह को नजरअंदाज किया, उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। मुल्क की हिफाजत करने के मामले में फौज हमेशा से सबसे आगे रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि इस बड़ी जिम्मेवारी का भार हमारे सैनिकों के मजबूत कंधों पर आगे भी बना रहेगा। इसीलिए जरूरत है उन्हें हमेशा तैयार रहने की और बदलावों को अपनाने की।

आने वाले वक्त और उससे पैदा होने वाले खतरों को देखते हुए हिन्दुस्तानी फौज इस वक्त आधुनिकीकरण के दौर से गुजर रही है। वो अपनी ताकत में भी इजाफा कर रही है। साथ ही, भविष्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना नए कायदे बना रही है और उन्हें अमली जामा भी पहना रही है। हमारा मकसद अपनी फौज को एक चुस्त, मजबूत और जंग जीतने वाली टीम के रूप में तैयार करना है। यही टीम भविष्य में बाहरी और अंदरूनी खतरों से हमारी हिफाजत करेगी।

सेना का पहला काम, देश को बाहरी खतरों से बचाना है। कानून और व्यवस्था कायम करने के लिए जब नागरिक सरकार बुलाए, तो उसे मदद भी करनी चाहिए। मुसीबत के वक्त लोगों की सहायता करना भी उसका काम है। दिनोंदिन छोटी होती जा रही इस दुनिया में अपने वतन की बढ़ती इज्जत के कारण हमें नए खतरों के लिए तैयार रहना होगा। सुरक्षा परिषद् के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के शब्दों में ग्लोबलाइजेशन की मुखालफत, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खिलाफत करने के बराबर है। इसलिए हम अपने आस-पास और दुनिया में शांति और सुरक्षा मुहैया करवाने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।

भविष्य की जिम्मेदारियों से ही फौज का आकार प्रकार तय होगा। इसका संबंध केवल आने वाले खतरों से ही नहीं है, बल्कि उन क्षमताओं से भी है जिसकी हमें जरूरत पड़ेगी। तकनीक और बजट भी सेना को नया चेहरा देने में अहम भूमिका निभाएगा। हमें इस मुद्दे पर डिफेंस पॉलिसी और सैन्य नियमों का भी ध्यान रखना पड़ेगा। हालांकि अब पारंपरिक जंग का खतरा न के बराबर है, फिर भी हमें इसके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। वो भी एेसे स्तर पर जहां परमाणु बम का इस्तेमाल हो सकता है। हमें गैर परांपरगत युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए।

इस खतरे से निपटने के लिए हमारी सेना के तीनों अंगों को मिलजुलकर तैयारी करनी चाहिए। फौज में जमीन, हवा और पानी में अपने दुश्मनों के दांत खट्टे करने का माद्दा होना चाहिए। साथ ही, हमें साइबर स्पेस और अंतरिक्ष के इस्तेमाल पर भी ध्यान देना चाहिए। भविष्य की सेना को क्वांटिटी की जगह क्वालिटी पर ध्यान देना पड़ेगा। जहां तक मैनपॉवर का सवाल है, हमें अपनी फौज का सही आकार तय करना पड़ेगा। इसका हल हमें क्षेत्रीय सेना और रिजर्विस्ट फौज में मिल सकता है। साथ ही, पैरा-मिल्ट्री फोर्स और कें्रीय पुलिस बलों में आधुनिकीकरण से भी हमारा बोङा कम होगा।

अगर क्वालिटी की बात करें, तो हमारा यादा जोर क्षमता बढ़ाने और समंदर में सुरक्षा मुहैया करवाने पर है। हमें मॉडर्न और अचूक निशाने वाले हथियारों की जरूरत पड़ेगी। इससे अलग-अलग रहते हुए भी अपनी सेना एक साथ हमला कर सकेगी। हमारे दुश्मन को घुटनों के बल आना ही पड़ेगा। इसके लिए जरूरत है, एक मजबूत फौज की। एक एेसी फौज, जो हवा से हमला कर सके और पानी और जमीन में भी दुश्मनों को मात दे सके। इस वास्ते हमें स्पेशल फोर्स बनाने पड़ेंगे। साथ ही, अपनी रणनीतिक ताकतों और पैराट्रप्स के लिए जरूरी क्षमताओं पर भी ध्यान देना पड़ेगा। भविष्य में आतंकवादियों, सम्रुी लुटेरों और दूसरे खतरों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है।

इन सबके अलावा, हमें अपने दोस्त मुल्कों के साथ मिलकर ऑपरेशन चलाने के लिए भी खुद तो तैयार रखना चाहिए। इसके लिए जरूरत है, साङा युद्धाभ्यास की। हालांकि, हमारा देश केवल संयुक्त राष्ट्र के ङांडे तले अपनी फौज भेजता है। लेकिन हो सकता है कल को हमें उसकी सहमति वाले किसी ऑपरेशन में हिस्सा लेना पड़ेगा, जिसमें ङांडा किसी और का हो।

अपनी ताकत बढ़ानी है तो हम तकनीक को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इससे हम आज के खतरों से निपट सकते हैं। आज आईटी जंग का एक नया मैदान बन चुका है। इसीलिए हमें जरूरत पड़ी सी४आई२एसआर (कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर्स, इनफोर्मेशन, इंटेलिजेंस, सर्विलेंस और रिकॉन्सेंस) कैपिबिलिटी की। इससे हम जंग के कई मैदानों में दुश्मन को मात दे सकते हैं। तकनीकी विकास का फौज के आधुनिकीकरण से गहरा नाता है। इसी वजह से हमें जरूरत है, तकनीकी रूप से सक्षम मेहनतकश लोगों की। हमें बस सेना के भीतर ही तकनीकी शिक्षा पर जोर नही देना चाहिए, बल्कि बेहतर लोगों को भी चुनना पड़ेगा। यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है कि हमें फौज को यादा लुभावना बनाना है।

देश की तेज ग्रोथ रेट को सेना और समाज का भी ध्यान रखना चाहिए। हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कहना है कि दुनिया में केवल ताकत की पूजा होती है। अगर देश महफूज न होगा, तो विकास की तेज रफ्तार और आर्थिक प्रगति बेमानी, बेमतलब हो जाएगी। हमें शांति और सुरक्षा के लिए कीमत तो चुकानी पड़ेगी। किसी भी खतरे की हालत में दांव पर पहले की तरह बहुत कुछ लगा होगा। पुरानी कहावत है, जंग में कोई उप-विजेता नहीं होता। इसीलिए हम फौजियों को अपने हमवतनों के भरोसे को साबित करके दिखाना पड़ेगा। हम बदलावों को गले से लगाने के लिए जाने जाते हैं। हमें अपनी इस पहचान की लाज रखनी ही पड़ेगी। यह हमारी वो ताकत है, जिसकी वजह से हमारे दुश्मनों ने हमेशा मुंह की खाई है।

जनरल जे.जे. सिंह

पूर्व सेनाध्यक्ष

झुगिगयों तक पंहुचे हाई-टेक हेल्थ सुविधाओं की बयार



इसमें कोई शक नहीं है कि भारत एक अनूठा देश है। यह दुनिया को न सिर्फ सबसे यादा डॉक्टर (३0 हजार मेडिकल सीटें) बल्कि नर्स (अकेले बंेगलूर में ही तकरीबन ९00 नर्सिग स्कूल एवं कॉलेज हैं) और मेडिकल तकनीशियन भी देता है। अमेरिका से बाहर भारत में ही सबसे यादा यूएस एफडीए से मान्यता प्राप्त फार्मास्युटिकल्स कंपनियां हैं। मौजूदा क्षमता के लिहाज से, भारत की कंपनियों में इतनी कुव्वत है कि अपने दम पर समूची दुनिया भर के लिए दवाएं तैयार कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें एेसा करने की अनुमति दी जाए तो। जाहिर है, एेसी अनुमति उन्हें नहीं दी जाएगी, क्यों..? यह एक अलग विषय है।

लेकिन जब बात स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की आती है तो भारत दुनिया का नेतृत्व करता नहीं नजर आता। आज इंसानी शरीर पर सबसे यादा चिकित्सीय प्रक्रियाएं अमेरिका में की जा रही हैं। अगर आप केवल हार्ट सर्जरी की ही बात करें तो दुनियाभर में औसतन हर साल ६.५ लाख दिलों के ऑपरेशन होते हैं और जिसमें से ४.५ लाख अकेले अमेरिका में अंजाम दिए जाते हैं। बाकी पूरी दुनिया मिलकर भी महज दो लाख ऑपरेशनों को अंजाम दे पाती है। भारत में हर साल २५ लाख हार्ट सर्जरीज किए जाने की दरकार होती है लेकिन हो पाती हैं केवल ८0 हजार। इसी तरह इंसानी शरीर पर अन्य चिकित्सीय प्रक्रियाओं की भी कमोबेश यही हालत है। तो सवाल यह उठता है कि आखिर अगले पांच वर्षो के भीतर भारत इस अंतर की भरपाई कैसे करने वाला है?

भारत में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अधिकतर लोगों द्वारा इस पर आने वाले खर्च को वहन करने की ही कुव्वत न होना है। यह भी सच है कि अगर अमेरिका में भी हेल्थ इंश्योरेंस प्रोग्राम न होता तो यादातर अमेरिकनों में भी इतनी माली कुव्वत न हो पाती कि वह अपनी उंगली का एक नाखून तक उखड़वा पाते, हार्ट सर्जरी तो बहुत दूर की बात है। चूंकि यादातर विकसित देशों ने खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया है और हेल्थ इंश्योरेंस के जरिए एक कारगर हेल्थकेयर सिस्टम अपने यहां लागू किया है कि यादा से यादा लोग इनका खर्च उठाने में समर्थ हो जाते हैं।

चार साल पहले, नारायण हृदयालय और कर्नाटक स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी ने मिलकर यशस्विन नाम से एक माइक्रो हेल्थ इंश्योरेस कार्यक्रम की शरुआत की थी। इस इंश्योरेस कार्यक्रम से यह बात साबित हो गई थी कि मात्र पांच रुपए महीने खर्च करके लाखों की तादाद में गरीब किसान किसी भी तरह की सर्जरी के खर्च को ङाेल सकने की सामथ्र्य पा सकते हैं, जिसमें कि हार्ट सर्जरी भी शामिल है और वह भी बिल्कुल मुफ्त। आज, स्कीम की शुरुआत के चार साल गुजरने के बाद, जहां एक ओर अब तक तकरीबन २४ लाख किसान इस स्कीम से पहले ही फायदा उठा चुके हैं, वहीं दूसरी ओर यशस्विनी से मिलती-जुलती कई स्कीमों की शुरुआत कई और रायों में भी हो गई है। इन्हीं में से एक है आरोग्य श्री, जिसे आंध्र प्रदेश सरकार ने शुरू किया है। इसके जरिए राय के तीन जिलों में गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे आने वाले कार्डहोल्डरों को हर तरह की सर्जरी का खर्च वहन करने की क्षमता मुहैया कराई जाती है।

पश्चिम बंगाल में भी ग्रामीण स्कूलों के लगभग चार लाख टीचरों के लिए एक बेहतरीन हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है। हर टीचर को स्वास्थ्य खर्चे के लिए हर माह १00 रुपए दिए जाते हैं, जिसमें वह एंटीबायोटिक के एक कोर्स पर आने वाला खर्च भी नहीं उठा सकते। लेकिन अब पश्चिम बंगाल सरकार और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने मिलकर टीचर के समूचे परिवार को १.६ लाख रुपए मासिक तक का हेल्थ कवर मुहैया करा दिया है। इसके लिए टीचर को महज १00 रुपए मासिक ही देने होते हैं। बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के और महज एक कदम उठाने से लगभग २0 लाख नौकरीपेशा लोगों को बड़ी से बड़ी सर्जरी और चिकित्सा के खर्चे को ङाेल सकने की सामथ्र्य दे दी गई।

चंद दिनों पहले, मेरी श्रीमती जी जब एक माल के सामने से पैदल गुजर रही थीं तो उनकी नजर एक भिखारी पर पड़ी, जो कि अपने चेहरा ढंक कर भीख मांग रहा था। उन्हें उत्सुकता हुई कि आखिर उसने चेहरा क्यों ढंक रखा है, वह उसे थोड़ा से नजदीक से देखने पहुंच गईं तो खुलासा हुआ कि वह भिखारी एक हाथ से मोबाइल छिपाकर किसी से बातें करने के साथ-साथ दूसरे हाथ को फैलकर भीख मांग रहा था। इस नजारे की तार्किक व्याख्या भारत में मौजूद है और मोबाइल फोन होना यहां अब आम बात है। एक जमाने में फोन की सुविधा को ही तरसते इस देश में आज आधुनिक से आधुनिक मोबाइल फोन हैं, कभी रेडियो की आस जोहते इस मुल्क में सैकड़ों चैनलों से लैस रंगीन टीवी के रंग बिखरे हैं। इसी तरह तकनीकी और आर्थिक हथियारों से की मदद से, जीवन की मूलभूत जरूरतों मसलन स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं को भी हैसियत के पैमाने से अलग किया जाना चाहिए। यहां तक कि ङाुग्गी में रहने वाले किसी शख्स के लिए भी हाई-टेक स्वास्थ्य सुविधाओं का फायदा उठाना आम बात हो, जिन्हें स्मार्ट कार्ड के इस्तेमाल से इन सुविधाओं तक अपनी पहुंच बनाने की सामथ्र्य देनी चाहिए।

अगर इकाई के तौर पर देखें तो गरीबशख्स बेहद कमजोर नजर आता हैलेकिन अगर इनकी सामूहिक तादादमें इन्हें देखें तो यह बेहद मजबूतताकत हैंदुनिया में केवल सरकारोंके पास ही यह चमत्कार करने कीसामथ्र्य होती है, जिसके जरिए वहएेसे सुनियोजित इंतजाम कर सकेंकि एक पैसा भी खर्चना पड़ेमाइक्रो हेल्थ इंश्योरेंस इसका एकबेहतरीन उदाहरण हैमुङाे पूरायकीन है कि सरकार हेल्थ इंश्योरेंससेवा मुहैया कराने की भूमिका मेंउतरेगी, बजाय स्वास्थ्य सेवा देनेवाली संस्था केजब एेसा होगा- और इसके लिए नीतिगत बदलाव कीजरूरत पड़ेगी- यह देश रहने के लिएएक बेहतरीन जगह बन जाएगा

डॉ. देवी शेट्टी

चेयरमैन, नारायण हृदयालय

बेंगलूर

Tuesday, October 9, 2007

आपके सपने, आपकी बात

कभी अपने भारत को दुनिया खारिज कर देती थी, लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है। सेवा क्षेत्र में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। आज हिन्दुस्तानियों का सम्मान पूरी दुनिया करती है। फाइनेंस, टेक्नोलॉजी, मेडिसिन और ज्ञान में हमारी कोई सानी नहीं है। आज भारतीय अमेरिकी पेशकशों को लात मारकर फिर अपनी मातृभूमि की ओर वापस आ रहे हैं। भारत को अभी और दूर, बहुत दूर जाना है। उसे तो दुनिया का नेतृत्व करना है। मैं तो उदय कोटक जी की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि इसके लिए हमें चीन से सीख लेनी होगी। उनका कहना बिलकुल सही है कि जब चीन के टॉप तीन बैंक पिछले चंद बरसों में दुनिया के टॉप १0 बैंकों की लिस्ट में शामिल हो सकते हैं तो अपने बैंक क्यों नहीं? हम दुनिया को हैरत में डालते आए हैं और आगे डालते रहेंगे।

मोहन शर्मा, बनारस




आज का भारत असंख्य अवसरों वाला देश है। हमें अब खुद पर यकीन होने लगा है। दुनिया दम साधकर बैठी है और हमारी उपलब्धियों का लोहा मान रही है। हमारी अर्थव्यवस्था पहले ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है। आज हम खरबों डॉलर वाली बाजार पूंजी वाली ताकत बन चुके हैं। पिछले पांच बरसों में, हमने अरबों डॉलर की पूंजी वाली कंपनियों की रिकॉर्ड फसल पैदा की है। पिछले चार वर्षो में, हमने लाखों की तादाद में नई नौकरियों को मुहैया कराया है। फिर भी आनन्द महिं्रा की यह बात सच है कि हमारे समाने कई समास्याएं हैं, जैसे भूख, गरीबी, अशिक्षा और धार्मिक उन्माद। तमाम कामयाबियों के बावजूद, भारत की एक तिहाई आबादी कुपोषित, अशिक्षित और बीमारियों के शिकार हैं। हमें अगर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना है तो इन्हें मात देनी ही पड़ेगी।

सुरें्र ङा, पटना




मेरे सपनों के भारत में प्रतिस्पर्धा खुली और स्वास्थ्य होगी। कारोबार को किसी प्रकार की कैद में नहीं रखा जाएगा। नए और लुभावने क्षेत्रों में लोगों को उतरने से रोकने के लिए नियम-कानूनों कैद नहीं होगी। हमने सारी दुनिया की निगाहें अपनी ओर करने में कामयाबी इसलिए हासिल की है क्योंकि हमारे पास उद्योग जगत के क्षत्रपों की हैरतअंगेज तौर पर बढ़ती खेप है। साथ ही अपने देश को तमाम मुश्किलों से भी छुटकारा दिलाने की जरूरत है। साथ ही, हमें अपनी संस्कृति और मूल्यों का भी ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि बिना मूल्यों और उसूलों के आदमी की कोई हैसीयत नहीं होती। मुङाे इस बारे में ओबेराय जी का ख्वाब सबसे प्रभावी लगा।

नवीन वर्मा, कानपुर




मेरे नए भारत का ख्वाब तो बिना बुनियादी ढांचे में विकास के पूरा ही नहीं हो सकता है। भारत एक विशाल देश है। इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की जरूरत कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा जैसे तीन मूलभूत क्षेत्रों को विकास के अवसर मुहैया कराने के लिहाज से अहम है। श्रीधरन साहब ने सच ही कहा है कि इसीलिए हमें तेज रफ्तार और सुरक्षित ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की जरूरत है। देश में ७0 फीसदी से यादा माल ढुलाई और यात्रियों का आना-जाना सड़कों के जरिए होता है। नेशनल हाइवे समेत नई सड़कें बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। लेकिन हमारे भ्रष्ट राजनेता इस महान इंसान की बात समङाने में नाकाम रहे हैं।

विनोद राजवंशी, दिल्ली

Monday, October 8, 2007

वर्ल्ड क्लास पब्लिक ट्रांसपोर्ट है विकास का इंजन


हम भारत में हो रहे बड़े बदलावों और विकास कार्यो की दहलीज पर खड़े हैं। यह हर भारतीय के लिए उम्मीदों भरा दौर है, एक एेसा दौर जिसमें वे बेहतर जिंदगी और बेहतर देश का ख्वाब देख सकते हैं। लिहाजा, यही वह वक्त है, जब हम भविष्य के भारत का ताना-बाना बुनें। हालांकि जब हम सावधानीपूर्वक इस ओर देखें कि देश क्या बन सकता है तो हमें इस तथ्यात्मक तस्वीर को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए कि भारत का एक गौरवशाली अतीत भी है, न सिर्फ आर्थिक समृद्धि के पैमाने पर बल्कि नैतिक मूल्यों के पैमाने पर भी। मुङाे भारतीय होने पर गर्व है और उन मूल्यों पर भी, जो भारत के साथ जुड़े हैं। हमारी आध्यात्मिक विरासत और उच्च नैतिक आदर्श ही हमें दूसरों से जुदा करते हैं और विकास की अपनी दौड़ में हमें इन्हें किसी भी हालत में अनदेखा नहीं करना चाहिए।

सुनहरे अतीत के बावजूद, बेशुमार जंगों और विदेशी अतिक्रमणों ने भारत को दुनिया के मुकाबले कई सौ साल पीछे धकेल दिया था। आजादी के बाद, हालांकि स्थिति सुधरनी शुरू हुई। भारत ने बेशक पिछले ६0 बरसों में तरक्की की नई इबारतें लिखी हैं। खासतौर पर जब औद्योगिकीकरण, कृषि और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की बात की जाए। लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

मैंने पिछले दो दशकों में एक स्वागतयोग्य बदलाव की आहट महसूस की है। चाहे इसे आर्थिक सुधारों के नतीजे कहिए या फिर नई शुरुआत, पिछले चंद बरसों में भारतीयों में खुद पर यकीन करने का आत्मविश्वास कूट-कूट के भर गया है। मुङाे गर्व है कि दिल्ली मेट्रो ने भी इस काम में छोटी सी भूमिका निभाई है। इस विश्वस्तरीय मेट्रो का निर्माण और संचालन तयशुदा कार्यक्रम से भी पहले चलने और बजट के अंदर रहने से भारतीयों में यह आत्मविश्वास पनपा कि वे भी सबसे चुनौतीपूर्ण और जटिल तकनीक वाले प्रोजेक्टों को पूरी कुशलता के साथ अंजाम दे सकते हैं।

मैंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में दशकों बिताए हैं और मेरे सपनों के भारत में एेसा पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम ही होगा, जिसे दुनियाभर में बेहतरीन होने का दर्जा मिले। मैं जानता हूं कि यह संभव है लेकिन इसे हकीकत की शक्ल देने के लिए कई चीजों को बदलना होगा।

लंबी दूरियों के लिहाज से भारत एक विशाल देश है और इसीलिए इसके आर्थिक विकास के मद्देनजर तेज रफ्तार, विश्वसनीय और सुरक्षित ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की जरूरत है। दुर्भाग्य से, हमारे नीति निर्धारक इस बात को समङाने में नाकाम रहे कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर में किया जाने वाला निवेश दूसरे सेक्टरों में हो रहे देश के विकास में ही घूम-फिर कर काम आता है। देश में ७0 फीसदी से यादा माल ढुलाई और यात्रियों का आना-जाना सड़कों के जरिए होता है। नेशनल हाइवे समेत नई सड़कें बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। स्वर्णिम चतरुभुज परियोजना को इस दिशा में शुरुआत माना जा सकता है और मुङाे उम्मीद है कि इस तरह के अन्य प्रोजेक्ट भी रफ्तार पकड़ेंगे।

जहां तक भारतीय रेलवे की बात है, इसके आधुनिकीकरण और सुरक्षात्मक उपायों के लिए आक्रामक नीति बनाने की आज सख्त जरूरत है। रेलवे को माल ढुलाई के लिए कंपनियों को समर्पित डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर अपनी प्राथमिकता को भी बदलकर यात्रियों के लिए डेडिकेटेड हाई स्पीड पैसेंजर कॉरिडोर करनी चाहिए, जिसमें सभी मेल और एक्सप्रेस रेलगाड़ियों को चलाना चाहिए। इसके जरिए उससे कहीं यादा क्षमता भी मिल जाएगी, जितनी कि माल ढुलाई के लिए आज दरकार है।

हवाई उड़ानों के मोर्चे पर भी, लगता है हम भविष्य की ओर देख ही नहीं रहे हैं। देश को आज आधुनिक हवाईअड्डों की जरूरत है और कम से कम आज की तादाद के मुकाबले तो तीन से चार गुना यादा संख्या में। बेंगलुरू के देवनहल्ली और हैदराबाद के पास शम्साबाद में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है लेकिन इस तरह के कई और प्रोजेक्ट की जरूरत है। खासतौर पर दूर-दराज के इलाकों में इनकी जरूरत है और मुङाे उम्मीद कि देश के कोने-कोने में हवाई संपर्क का सपना भविष्य में सच हो सकेगा।

एक तरफ तो हमारे शहर तेजी से बढ़ रहे हैं मगर दूसरी तरफ शहरी परिवहन ढांचा अफसोसजनक तरीके से पिछड़ रहा है। दिल्ली मेट्रो जैसे आधुनिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम हमारे शहरों की आर्थिक गतिविधियों की चाल बरकरार रखने के लिए बेहद जरूरी हैं। निजी कारों के इस्तेमाल को कम करने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को यादा इस्तेमाल करने को प्रोत्साहन देने के कदम भी उठाए जाने चाहिए। शुक्र है, दिल्ली मेट्रो की सफलता के बाद मुंबई, बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद और चेन्नै जैसे कई और भारतीय शहरों में मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है।

सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति घोषित की है, जो कि एक अछी शुरुआत है। सरकार को अब ३0 लाख से यादा आबादी वाले हमारे सभी शहरों में मेट्रो निर्माण और विस्तार की देखभाल के लिए भी एक अलग मंत्रालय बनाना चाहिए। केवल इन्हीं तरीकों से हमारे मध्यम और बड़े शहरों में ट्रांसपोर्ट संबंधी समस्याएं सुलङा सकेंगी।

भारत में एक एेसे प्रशासनिक माहौल की भी जरूरत है, जिसमें फैसले तेज रफ्तार से लिए जा सकें। प्रक्रिया में आने वाली रुकावटें ही परियोजनाओं के अमल की रफ्तार को सुस्त करती हैं और ये हालात बदलने होंगे। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन इस मामले में काफी कामयाब रही है और कोई वजह नहीं है कि सरकारी महकमे और सार्वजनिक उपक्रम इसका अनुसरण न कर सकें।

इसमें कोई शक नहीं है कि सपनों का भारत बनाने के लिहाज से पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक एेसा क्षेत्र है, जहां बड़े पैमाने पर सुधार करने होंगे। आखिरकार देश के विकास के फायदे गरीबों और गांवों तक पहुंचने ही चाहिए। दुखद बात है कि आज देश में दिख रहे समूचे विकास का अधिकांश केवल शहरी इलाकों तक ही सीमित है। मैं एक भारत की कल्पना करता हूं, जिसके हर नागरिक की पहुंच से शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार दूर नहीं होंगे। ग्रामीण इलाकों में स्कूल और हास्पिटल बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बनाने भर से ही यह सपना पूरा नहीं हो सकेगा। सरकार को यह भी तय करना होगा कि टीचर और डॉक्टर अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाएं और केवल वेतन लेने के लिए ही महज नौकरी न करें। अल्पकालिक रोजगार के अवसर मुहैया कराना भी काफी नहीं है। बेहतर यही होगा कि हमारे कृषि उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं और सैकड़ों की तादाद में वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर भी स्थापित किए जाएं।

७५ साल की अपनी उम्र में, मैंने भारत में एेतिहासिक बदलाव देखे हैं। कुछ बदलाव बेहतर थे तो कुछ बदतर। भविष्य का भारत, मुङाे पूरा यकीन है, विकसित देशों की कतार में खड़ा होगा और मैं शिद्दत से उम्मीद करता हूं कि हमारे देश की नैतिक संपदा भी बरकरार रहेगी। आखिरकार, एेसी समृद्धि के मायने भी क्या होंगे, जिसके लिए आदर्शो की कुर्बानी देनी पड़े।

- डॉ. ई. श्रीधरन

(डॉ. इलाट्टवालापिल श्रीधरन दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।)