एक अरब की आबादी वाला मुल्क भारत, दुनिया की शीर्ष तीन आर्थिक महाशक्तियों में शामिल होने की राह पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहा है। लेकिन हकीकत का एक और चेहरा भी है। प्रति व्यक्ति के लिहाज से भारत की औसत घरेलू आय ७५0 डॉलर है, जो कि सभी ५३ अफ्रीकी देशों से भी २0 फीसदी कम है। यही वजह है, आज भारत की क्षमताओं और इसकी हकीकत के बीच खाई को पाटने की सख्त जरूरत आन पड़ी है। यह न केवल सिर्फ भारत के लिए जरूरी है बल्कि दुनिया की भलाई के लिए भी इसे अंजाम दिए जाने की अहमियत है। भारतीय कायाकल्प के जरिए ही दुनिया की शक्लो-सूरत में इस लिहाज से आमूल-चूल बदलाव लाया जा सकता है कि इससे न सिर्फ क्षेत्रीय भेदभाव मिटेगा बल्कि हर कहीं लोगों के जीवनस्तर को भी बेहतरीन बनाया जा सकेगा। वह इसलिए क्योंकि हमारी धरती पर रहने वाले समूचे इंसानों में से हर छठा शख्स इसी देश में रहता है। इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए भारत को तरजीही तौर कुछ चीजों को करना होगा। हालांकि मेरे एजेंडा के मुताबिक, जरूरत हमारी अर्थव्यवस्था के हर पहलू में तकनीकी विकास की है और इसे ही हमारी सामाजिक समस्याओं से निबटने के लिए प्रमुख हथियार बनाने की है।
दुनिया की आर्थिक महाशक्तियां तकनीक के मामले में भी अगुआ हैं। अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग २८ प्रतिशत तकनीकी सेक्टरों से ही आता है। तकनीक के विभिन्न आयामों का इस्तेमाल करके हम भारत के भी कई क्षेत्रों का कायाकल्प कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, तकनीक की मदद से कृषि उत्पादन को उल्लेखनीय तौर पर बढ़ाया जा सकता है। मेरा मानना है कि कृषि क्षेत्र में एक बार फिर से आर्थिक और सामाजिक विकास का इंजन बन कर उभरने की कुव्वत है। भारत के किसान अर्थव्यवस्था में खतरे के मुहाने पर सबसे आगे खड़े हैं। वे मौसमी अनिश्चितताएं ङाेलते हैं, उत्पादन की बिकवाली के उनके पास कोई भरोसेमंद स्रोत नहीं होते, उत्पादों के बदले बेहद कम रकम उनकी जेबों में आती है, बाजार के खेल में ये कीमतें तय होती हैं, संसाधनों की उनके पास उपलब्धता बेहद कम और स्तर बेहद घटिया होता है और इन सबसे ऊपर निजी संस्थाओं से कर्जा लेने की सबसे यादा कीमत उन्हें ही चुकानी पड़ती है। दुर्भाग्य से, उन्हें फसल की कम कीमत, कम निवेश, कम उपज और कम आमदनी के सिस्टम का शिकार होना पड़ता है। संसाधनों की कमी उन्हें हर चीज के लिए ङाेलनी पड़ती है, चाहे वह जमीन हो, पानी, फसल का पोषण या फसलों की सुरक्षा। यह एक विरोधाभास है। क्योंकि दूसरे मुल्कों से अगर तुलना की जाए, खासतौर पर अमेरिका और चीन से, तो भारत के पास सबसे यादा अनुपात में खेती योग्य जमीन है। सच तो यह है कि समूचे एशिया में ३0 प्रतिशत सिंचाई वाली जमीन भारत में ही है।
भारत में इतनी कुव्वत है कि वह मौजूदा कृषि उत्पादन में १0 गुना का इजाफा कर सके। इस्राइल में खेती योग्य जमीन पर प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि उत्पादन से ५.८ मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई होती है। भारत में यह केवल ८८,000 अमेरिकी डॉलर है। २00६-0७ के आर्थिक सर्वे ने कृषि क्षेत्र की कुछ ढांचागत कमोजरियों की ओर इशारा किया है, जिसमें गेहूं और चावल की यादा उपज वाली नई प्रजातियों की घटती उपज क्षमता, फर्टिलाइजरों का असंतुलित इस्तेमाल, बीजों की वापसी के कम दाम और कमोबेश सभी फसलों की प्रति यूनिट एरिया में कम होती उपज शामिल हैं। कृषि विकास पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि बुआई की कुल जमीन का तकरीबन ६५ फीसदी हिस्सा अभी बरसात पर ही निर्भर है।
एेसी ही कहानी पानी की भी है। भारत हर साल मिलने वाले ४000 बिलियन क्यूबिक मीटर ताजे पानी का केवल एक चौथाई हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाता है। इसकी वजह सीमित जमीनी दायरे तक इसकी पहुंच, जल संसाधनों का असमान वितरण और कम बांध क्षमता हैं। कृषि उत्पादन में इस्तेमाल पानी के महज १४वें हिस्से को ही बेहतरीन श्रेणी में रखा जा सकता है।
हमने औद्योगिक क्रांति के मौके को गंवा दिया और पीछे छूट गए। सौभाग्य से, हम फिर से दौड़ में शामिल हो गए क्योंकि उपनिवेशवादी शासन से आजादी के तुरंत बाद बने उच्च शिक्षा के संस्थानों प्रशिक्षित श्रमशक्ति के खजाने से हमें मालामाल कर दिया। आर्थिक सुधारों ने हमारी नई पीढ़ी की उद्यम ऊर्जा शक्ति को अडिग बना दिया और ग्लोबलाइजेशन ने संभावनाओं के नए दरवाजे खोल दिए। हम लोगों को इस नींव को और मजबूत बनाना है और दरवाजा खटखटाती संभावनाओं का पूरा फायदा उठाने से कतई चूकना नहीं है।
यादा उपज वाली हाइब्रिड फसलों के जरिए हरित क्रांति करके हमने एक एेतिहासिक काम किया है। लेकिन तब से, कृषि में तकनीकी विकास की हमारी रफ्तार सुस्त रही है। आज, भारत को सूखे और रासायनिक कारकों से अप्रभावित फसलों के लिए तकनीक के विकास की जरूरत है।
तकनीक भारत के समाज की कायाकल्प करने का माद्दा भी रखती है। यह हर व्यक्ति को अलग-अलग तौर पर अपनी सामथ्र्य बढ़ाने में भी मदद कर सकती है। सच्ची ताकत वही है, जिसके जरिए कोई भी शख्स अपनी तकदीर की इबारत में कुछ फेर-बदल करने या फिर उसे नया आकार देने की कुव्वत दिला सके। मेरे विचार से, पूरी दुनिया, गुट में रचने-बसने वाली शक्ति से हर व्यक्ति विशेष में रचने-बसने वाली शक्ति की ओर बढ़ेगी। तकनीक की मदद से ही यह बदलाव संभव है। तकनीक हर शख्स को चुनने, संवाद करने, जुड़ने और कुछ नया करने की क्षमता दे सकती है।
तकनीकी क्रांति की राह पर चल कर, हर शख्स किसी उत्पाद का निर्माता बनने की ताकत पा सकेगा या फिर अपनी पसंदीदा सेवाओं को चुन सकेगा, चाहे वह ऑटोमोबाइल हो, होटल का कमरा हो या पालतू जानवर का क्लोन। हर शख्स के पास क्षमता होगी कि दुनिया के किसी भी कोने पर बैठे दूसरे शख्स से वह संवाद कर सके, कभी भी और किसी भी तरीके से। हर शख्स के पास यह क्षमता होगी कि दुनिया में होने वाली व्यक्ति विशेष की या सामूहिक गतिविधि से जुड़ सके या उसमें शामिल हो सके। हर शख्स के पास यह क्षमता होगी कि वह यादातर उत्पादों को खुद बना सके या फिर यादातर सेवाओं का फायदा उठा सके।
नए मोर्चो पर इंसानी फतेह की कहानी अनादि-अनंत है। नए विचारों को अपनाने की होड़ संक्रामक होती है। इस संक्रामक उत्सुकता को शिक्षा के प्रसार. जागरूकता और आय की मदद से बढ़ाया जा सकता है, खासतौर पर पिरामिड की निचली सतह पर आने वाले लोगों का स्तर ऊपर उठा कर। बहुत से मोर्चे अभी नाममात्र को ही फतेह हो पाए हैं- जैसे सामथ्र्य में इजाफा, आयु और जीवनस्तर, दिमाग की गुत्थियां, अंतरिक्ष के रहस्य और सागर की गहराइयों की दुनिया। तकनीक भारत और भारतीयों को एेसे ही नए मोर्चो को फतेह करने में मदद कर सकती है।
भारत में वह सारे गुर मौजूद हैं, जिनसे वह तकनीकी क्षमता से लैस मुल्क की शक्ल अख्तियार कर सके। इसके पास शिक्षित और प्रशिक्षित पुरुषों-महिलाओं की एक बड़ी तादाद है, विज्ञान और तकनीक की शिक्षा के लिए दुनिया के चंद बेहतरीन संस्थान हैं और निजी क्षेत्र की उत्साहजनक उत्पादक ऊर्जा भी है। हमें इन खूबियों को पहचानने की और अपने मुल्क के लोगों और संस्थानों को विश्वस्तरीय ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए आजादी देने की जरूरत है।
भारत को कायाकल्प कर सकने वाली तकनीकों पर अपना ध्यान कें्िरत करना चाहिए। मेरे विचार से, आधुनिक दवाओं, वैकिल्पक ऊर्जाओं, नेटवर्क कम्युनिकेशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, प्रदर्शनकारी पदार्थो, बायोटेक्नॉलजी, नैनोटेक्नॉलजी, रोबोटिक्स, ऑटोमेशन और एयरोस्पेस के क्षेत्रों में खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
विकसित मुल्कों में बहुत सीतकनीकें निजी क्षेत्रों की उपज हैं। इनका विकास पब्लिक फंड के जरिएहुई रिसर्च, बड़ी कंपनियों कोपरंपरागत कारोबार से मिले जरूरतसे यादा पैसे, बौद्धिक संपदा केसंरक्षण, उत्साहजनक उपक्रमों मेंपूंजी निवेश, प्रतिस्पद्र्धी बाजार औरइन सबसे ऊपर एकेडमिक रिसर्चरोंके लिए अनुकूल माहौल की बढ़तीमांग से हुआ है। निजी क्षेत्रों मेंक्रांतिकारी क्षेत्रों की पहचान, रिसर्चपर यादा खर्च और अग्रणी कंपनियोंद्वारा रिसर्च के क्षेत्र में पूरी शिद्दत सेउतरने से भारत में भी एेतिहासिकअविष्कार हो सकते हैं। भारत कोअविष्कारी ऊर्जा का कें्र बननाहोगा अगर यह दुनिया की आर्थिकमहाशक्ति बनने का ख्वाब रखता हैतो। विकास के अपने एजेंडा मेंभारत को तकनीक का स्थान सबसेऊपर रखना ही होगा।
मुकेश अंबानी
चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड